एका त्योहार
दीवाली सा हर दिन लगे
और दशहरे सी रात !
होली जैसी दोपहरी
हो रोज खुशी की बात !!
पर आज दीया जले आगजनी सा
राम राज में रावण पलता !
गुलाल में है बारूद की असर
घड़ी-घड़ी अन्याय क्यों बढ़ता ?
हम सब ऐसा कसम उठाएँ
अब “एका त्योहार” मनाएँ !
अन्याय जहां टिक न पाए
ऐसा एक नवभारत बनाएँ !!
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