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11 May 2020 · 1 min read

ऋणी इंसान

सिर ऊपर है ऋणों की
भारी धरी गठान
मैं हूं मृत्यु लोक का
एक ऋणी इंसान
पहला ऋण भगवान का
जन्म दिया इंसान
ऋण है धरती मात का
जो कर न सके बखान
मात पिता का ऋण बड़ा
जन्मों चुक न पाए,
भारी ऋण श्री गुरु का
गोविंद भी गुण गाए,
ऋणी में सकल समाज का
भाई बहन परिवार
ऋण है जीवन साथी का,
वर्णन नहीं विचार

Language: Hindi
13 Likes · 2 Comments · 267 Views
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