ऋणी इंसान
सिर ऊपर है ऋणों की
भारी धरी गठान
मैं हूं मृत्यु लोक का
एक ऋणी इंसान
पहला ऋण भगवान का
जन्म दिया इंसान
ऋण है धरती मात का
जो कर न सके बखान
मात पिता का ऋण बड़ा
जन्मों चुक न पाए,
भारी ऋण श्री गुरु का
गोविंद भी गुण गाए,
ऋणी में सकल समाज का
भाई बहन परिवार
ऋण है जीवन साथी का,
वर्णन नहीं विचार