उम्मीदें पालकर बैठा हूँ
बहुत उम्मीदें पाल कर बैठा हूँ
खुद का बुरा हाल कर बैठा हूँ
रिश्ते बेजान से तो होने ही थे
रूहे ऐतबार निकाल कर बैठा हूँ
टूट कर बिखर सा गया था मैं
बमुश्किल सँभाल कर बैठा हूँ
मुझको बरबाद तो होना ही था
इश्क की मज़ाल कर बैठा हूँ
नींद आंखों से नदारद रहती है
जब से तेरा ख़्याल कर बैठा हूँ
…… ‘अर्श’