उफ़ ये बेटियाँ
उफ़ ये बेटियाँ
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उफ़ ये बेटियाँ ,
मासूम सी ये बच्चियाँ,
आरजूओ से दिलेर हैं ,
समाज से तंग ये बेटियाँ ,
गुलाब की ये पखुङिया ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
आँसूओं की कहानियाँ,
सब ये जानता जमाना,
फ़िर क्यो बेबश हैं,
ये नादान बेटियाँ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
हर एक ज़बान पर,
सही -गलत हैं बेटियाँ,
काँच सा अक्स हैं,
पत्थर सी हैं ये बेटियाँ ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
“माँ ” मोहब्बत की मिशाल हैं,
सारे जहाँ में जिसका नाम है,
मर्तबा कमाल हैं,
हैं वो बुलन्द बेटियाँ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
राक्षसों की निगाह में,
जब कभी चढ़ी बेटियाँ,
तबाह हुई ,भस्म हुई,
सहम गई बेटियाँ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
गुजारिश यही हैं सभी से,
उरूज मिले,तरक्की करे बेटियाँ,
खिलखिलाये ,चहके, महके,
मुस्काये ,मुबारक ये बेटियाँ ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
अब न जले कहीँ बेटियाँ,
दहेज़ की भेंट न चढ़े बेटियाँ,
खुल कर जियें ये बेटियाँ,
देश का मान हैं ये बेटियाँ,
मत कुचलो इन्हे,
जीवन हैं ये बेटियाँ,
उफ़ ये बेटियाँ ।
शमा परवीन बहराइच उत्तर प्रदेश