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20 May 2024 · 1 min read

उनको मंजिल कहाँ नसीब

उनको मंजिल कहाँ नसीब
खो जाएँ जो राहों में,
घूम लो चाहे सारी धरती
सुकून अपनों की बाहों में II

रूप, धन, यौवन – हासिल , तो क्या?
सफल तो बस रब की चाहो में !
उदित भास्कर ग्रहण निगल जाए,
ऐसा असर निर्दोष की आहों में II

धरा से खदेड़े जो मासूम पक्षी,
हुए महफ़ूज़ वृक्ष की पनाहों में,
अजनबी शहर की बेतरतीब रिवायतें
परवाह की उम्मीद कहाँ बेपरवाहों में !

कभी तो दो जुबाँ को फुर्सत
करो गुफ़तगु सिर्फ निगाहों से ,
कारवाँ गुजर भी गया शहर से-
वो आवाज़ देते रहे कराहों से!

क्षितिज के पार ,दूर दूर
मिला नहीं वो शख़्स राहों में
कंटकों का मोह गज़ब ढा गया
फूल बेसख्ता झूले उसकी बाहों में।

Language: Hindi
21 Views
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