उधारी जीवन
कुछ उधार था
जीवन पर
चुका दिया
हमने भी क्या क्या
बिता दिया।।
सूरज, चाँद, सितारे
ये रश्मि ये अँगारे
सभी तो अपने थे
पेट की भूख ने भी
क्या-क्या भुला दिया।।
अभी धूप घर के
आँगन में उतरी थी
परछाई थी अपनी
कुछ कह रही थी
अविराम हमने भी
उसको सुला दिया।।
तक़दीर के दरवाजों पर
होती रही दस्तक अनगिन
काया थी मुफ़लिस जो
साँसों को रुला दिया।।
आना कभी घर पर
अपने से पूछना
कुछ बदलने के लिए
क्या-क्या हटा दिया।।
सूर्यकांत