“उड़ रहा गॉंव”
इक्कीसवीं सदी का बच्चा
भूलता जा रहा
गाय और माँ के दूध का फर्क,
बात करके देखना जरा
शहर के पक्ष में
वो बच्चा दे देगा सैकड़ों तर्क।
आदत बन गई है आज
मवेशियों की भी
सड़कों पर अड्डे जमाने की,
बूढ़ी दादी के बुलावे पर
अब कौन सोचता है
छुट्टियों में भी गाँव जाने की?
और तो और
चिड़िया भी समझने लगी है
शहर की भाषा,
सच कहूँ तो
आज के बच्चे जानते नहीं
गॉंव की परिभाषा।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति +
वर्ल्ड्स ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड में दर्ज साहित्यकार।