उठाएँगे
मौत रंज क़फ़स सारे का सारा उठाएँगे
रास्त के लिए तो हर इक खसारा उठाएँगे
मैं सॅंवारा गया हूँ दर्द ओ लहु की छिट से
इतना आसान नइ जो आप फ़िशारा उठाएँगे
वैसे तो खुदा वाकिया मजहब फूजूल मिरे लिए
वैसे कभी मन करे तो इश्क ए सिपारा उठाएँगे
कब तलक रोकते रहोगे कुचलते रहोगे जबान
शा’इर है अश’आर से बात दुबारा तिबारा उठाएँगे
उसकी याद में तड़प कर लिखा इक इक मिसरा
जरूरत कहाँ जो अरुज में काफ़ इकारा उठाएँगे
इजहार इकरार इश्क वस्ल लब रु ये क्यों करें कुनु
यार हम तो ग़ज़ल से हर लुत्फ़ ए नज़ारा उठाएँगे