इश्क़ का दस्तूर
है क्या कोई जादूगर यहां
जो टूटे दिल को जोड़ दे
बिखर गई है जो ज़िंदगी
जो फिर से उसे संवार दे
है क्या कोई कवि यहां
जो ऐसी कविता लिख दे
जुड़ जाए टूटे दिल फिर से
उनमें फिर से जान फूंक दे
है क्या कोई भविष्य वक्ता
जो प्रेम का अंजाम बता सके
पड़ने से इश्क़ के दरिया में
किसी मासूम को बचा सके
है क्या कोई गुरु यहां पर
जो सिरफिरे आशिक़ को समझा सके
चल पड़ा है जो इस अग्निपथ पर
उसको भी सही राह जो दिखा सके
प्रभु भी न बच पाए जिससे
है प्रेम के सामने सभी अभिभूत
हो जाए तो ये नहीं समझता
चाहे समझाने आए देवदूत
सब जादूगर नाकाम है
है कवि भी मजबूर
कारीगर भी हैरान है
भविष्य वक्ता कोसो दूर
गुरु भी नहीं जान पाए जो ज्ञान
प्रभु भी जिसके सामने है बेनूर
है इश्क़ का यही दस्तूर।