इतिहास
कभी गुजरों उन वीथिकाओं से
जहां तुम्हारे मन ने उकेरी थी
मेरी कई जीवंत प्रतिमाएं
तो ठहर जाना, दो घड़ी
बंद कर नयन,सुनना
मेरी करुण पुकार
मेरा आर्तनाद
मेरी खोजती आंखों
का क्रंदन
तुम्हारे नाम की आवृत्ति
मेरे मौन का उदघोष
और हां ! देख लेना
वहां बिखरा
मेरा समर्पण
मेरा स्नेह
मेरा द्रवित हृदय
जो सिर्फ़ तुम्हारी
प्रतीक्षा में
पत्थर बन चुका है।