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19 Dec 2022 · 1 min read

अन्नदाता

किसे सुनाऊं व्यथा तुम्हारी
तुमसे पली हैं सदियां सारी,
चाहे नर हो या फ़िर नारी,
सब जाएं यह तुम पर वारी,
तुम ही देते सबको आहार ,
तुम हो जग के पालनहार।।

पैरों में फट गईं विमाईं,
चेहरों पर अब गहरी झाईं,
जाने कैसी कसम है खाई,
काया की निर्बल परछाईं,
फिर भी जीते निराधार,
तुम हो जग के पालनहार।।

© अभिषेक पाण्डेय अभि

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