इक आदत सी बन गई है
कुछ तो ख़ास होगा
तेरी शख्सियत में जो तू जिन्दगी की
इक आदत सी बन गई है
मुमकिन है मैं जी पाऊं तुझ बिन
मगर जिंदगी जी पाएगी तुझ बिन
लगता नहीं बात ये मुमकिन है
ये सितम करते ही क्यों हैं
कि किसी के बिना जिन्दगी
अधूरी अधूरी सी हो
गुजारिश है तुझे ए दिल लगाने वाले
किसी की हो तो जाना
मगर किसी की आदत मत बन जाना
छोड़ देना उसे अकेले कुछ पल के लिए
जी पाए जहां वो
कुछ पल तेरे बिना भी