इंटरनेट
इंटरनेट का ये जहाँ, लगे हुए सब लोग|
आँखों पर ढक्कन लगा, हुए करोड़ों रोग|१|
खाना सोशल मीडिया, वॉट्सैप है नीर।
रिश्ते-नाते खो दिये,हालत है गंभीर|२|
मिलना जुलना बंद अब, करते हैं सब मीट|
पेपर करतें हैं यहाँ, देखो करके चीट|३|
एक जगह पर जम गए, उठता है अब कौन|
चैटिंग की दुनिया अजब,लगे हुए हैं मौन|४|
दोस्त, ज़िन्दगी कुछ नहीं, गूगल ही है यार|
डेट ऑनलाइन चले, गया भाँड में प्यार|५|
मेला सोशल मीडिया , तनहा है इंसान।
इयर फ़ोन हटता नहीं , करते खराब कान।६।
दुनिया की हर चीज़ है, गूगल जी के पास|
सबकुछ बतलाते यहीं, दुनिया कितनी खास|७|
मोबाइल में मिल रहे, सुख-सुविधा भरपूर|
असल जिन्दगी से मगर, होते जाते दूर|८|
किस दिशा में हैं सभी, क्यों बनते नादान|
लेकर ऐसा क्या करे, घटिया झूठी शान|९|
गुण अवगुण हर चीज़ का, मिला जुला यह रूप|
समय बाँध कर हम चलें, सुंदर बने स्वरूप|९०|
-वेधा सिंह