आ जा उज्ज्वल जीवन-प्रभात।
आ जा उज्ज्वल जीवन-प्रभात।
स्वर्णिम – किरणों के जाल लिए
आ बाल-अरुण निज भाल लिए,
हर ले अँधियारी, विकट – रात
आ जा उज्ज्वल जीवन -प्रभात।
खगवृन्द, ताल, तट मन्द पड़े
पथ रुद्ध, द्वार सब बन्द पड़े,
कर दूर तिमिर के असह घात
आ जा उज्ज्वल जीवन -प्रभात।
आ जा कि खिले अब सूर्यमुखी
कानन विहँसे, जग और सुखी,
डाली – डाली नव, हरित -पात
आ जा उज्ज्वल जीवन-प्रभात।
जीवन – सरिता जीना चाहे
आकंठ नीर पीना चाहे,
खेले लहरों के संग वात
आ जा उज्ज्वल जीवन -प्रभात।
अनिल मिश्र प्रहरी।