आ जाओ अब कृष्ण कन्हाई,डरा रही है तन्हाई
आ जाओ अब कृष्ण कन्हाई,डरा रही है तन्हाई
अंतर्मन में घना अंधेरा , दिखता नहीं सबेरा
लोभ मोह और काम क्रोध ने, मेरी दुनिया को घेरा
ढेर कंस है कृष्ण कन्हैया, कैसे करूं सफाई
अब तो आ जाओ कृष्ण कन्हाई, डरा रही है तन्हाई
बड़ी हुई है लिप्सा मन की, खबर नहीं है जीवन धन की
घोर तिमिर से ढकी हुई है, आज आत्मा अर्जुन की
हिंसा से आवध्द पथों पर, प्रेम की बंसी हुई पराई
अब तो आ जाओ कृष्ण कन्हाई, डरा रही है तनहाई
बैठा है धृतराष्ट्र हृदय में, कई दुर्योधन पाल रहा
सुनता नहीं कोई बिदुर की, कौंन नीति को पूछ रहा
बंधक है निष्पाप आत्मा, मुक्त करो अब कृष्ण कन्हाई
अब तो आ जाओ कृष्ण कन्हाई, डरा रही है तन्हाई
काबू नहीं कालिया मन का, जहर ह्रदय में भर डाला
अंतहीन इच्छाओं ने, जन मन पर डेरा डाला
नहीं सुरक्षित रहीं गोपियां, कौन करे अब प्रेम सगाई
अब तो आ जाओ कृष्ण कन्हाई, डरा रही है तन्हाई
सूना है मन का वृंदावन, उजड़े कुंज गली और कानन
संकट में आई गौमाता , लाऊं कहां से मिश्री माखन
मन बुद्धि आवध्द है तम से, गीता देती नहीं सुनाई
अब तो आ जाओ कृष्ण कन्हाई, डरा रही है तन्हाई
अब तो आ जाओ कृष्ण कन्हाई
सुरेश कुमार चतुर्वेदी