आज़ाद गज़ल
रोया रात भर माहताब क्यों
भीगा हुआ था गुलाब क्यों ।
नींद से कोई दुश्मनी तो न थी
खफ़ा हो गए मेरे ख्वाब क्यों।
सवाल तुम्हारे तिलमिलाते हैं
जबरन मांगते हो जवाब क्यों ।
देख कर ठिठके महफिल में
भूल गये हो ,तो आदाब क्यों।
इतनी जल्दी थी जुदा होने की
मिलने आये थे फिर जनाब क्यों ।
ज़िंदा रहने की देते हो दुआएं
ज़िंदगी कर दिया अज़ाब क्यों ।
-अजय प्रसाद