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29 Aug 2020 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

ये कैसी हवा आज बहने लगी है
मुहब्बत भी अब यार छलने लगी है ।

जमाना मुझे छोड़ देगा अकेला
उसे मेरी गजलें जो खलने लगी है ।

कभी खुश मुझे देख सकती नहीं वो
मेरी जिन्दगी मुझसे जलने लगी है ।

गरीबी मुझे रास अब आ गयी है
वो नजरें करम हम पे करने लगी है ।

खफा हो गये हैं तेरे ख्वाब तुझसे
अजय तेरी रातें बदलने लगी हैं ।
-अजय प्रसाद

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