आज़ाद गज़ल
भैंस के आगे यारों बीन बजा रहा हूँ
चुनावी मंच पे कविता सुना रहा हूँ ।
मिला है मौका बड़े दिनो के बाद तो
बहती गंगा में खुद हाथ धुला रहा हूँ ।
बस तारीफें मिले,तालियाँ बजती रहे
किस को है गरज़ क्या सुना रहा हूँ।
खुश हैं नेता जी भीड़ को देख कर
मैं उसी भीड़ का लुत्फ़ उठा रहा हूँ।
लगता है कि तुम सुधरोगे नहीं अजय
साफ़ कहो खुद को उल्लु बना रहा हूँ।
-अजय प्रसाद