आख़िर क्यों ?
कहीं सुना था …
दुनिया के दुःख में अपना दुःख फिर कम ही लगता है ,
ये कैसे लोग हैं जिन्हें खाने को नहीं मिलता ,
भूखे कहीं सड़को पे तो कहीं एक कोने में नज़र आते हैं ,
और वो कैसे लोग हैं जो –
घर का बचा खाना सड़कों पे फेंक दिया करते हैं
कभी रोटी कभी दाल तो कभी चावल –
क्यों इनका ठिकाना सड़कों नालियों में नज़र आता है ?
आख़िर इनका ठिकाना वो भूखे के पेट में नज़र क्यों नहीं आता है ?
आखिर क्यों ?
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’