आख़िरी ग़ुलाब
वो मेरे बग़ीचे का आख़िरी ग़ुलाब था,
हर कोई उसे ही तोड़ने को बेताब था,
उसकी सुर्ख लाल रंग में लिपटी आभा
जैसे आफ़ताब में चमकता महताब था !१
वो मेरे बग़ीचे का आख़िरी गुलाब था ….
खुशबू का नशा अपने शबाब पर था ,
उसे कांटो से भी मोहब्बत बेहिसाब था,
कोई बेरहम कहीं चुरा न ले जाये उसे,
इस डर से किया मैंने पूरा हिसाब था !२
वो मेरे बग़ीचे का आख़िरी गुलाब था …
दूसरी सुबह गम का बिफ़रा सैलाब था,
जमीं पर मुरझाया पड़ा मेरा ग़ुलाब था,
किसी ने कुचलकर छोड़ दिया था उसे,
लुट गया जो ,मेरे दिल का खिताब था !३
वो मेरे बग़ीचे का आख़िरी गुलाब था …
टूटकर,सूखकर,बिखरना मेरी नियति है,
जाते-जाते उसका आख़िरी जवाब था ,
मैं स्तब्ध सा खड़ा था मौन अश्रु लिए ,
लगा जैसे कोई टूटा सुनहरा ख्वाब था !४
वो मेरे बग़ीचे का आख़िरी गुलाब था …