आशीष
उन सभी लोगों को समर्पित जो एक दूसरे की मदद कर रहे हैं..
एक पड़ेगा कदम अकेला और अनागिनत साथ पग चल देंगे।
मुखरित आलंबन चुन-बिन कर, सौहार्द भरे लोचन होंगे।
संग अंगरक्षक बन जायेंगी, उमड़ेगी आशाएं झिलमिल।
मानस पर शीतलता होगी, बचपन होगा दृढ़ और खिलखिल।
तुमने मानवता का रिश्ता, ओ साथी खूब निभाया है।
अपनी अविचल सेवा बल से, ओ साथी देश बचाया है।
आशीष अदृश्य असीम तुम्हारी पीढ़ी को महकायेंगे..
इस जगत के ये निश्छल साथी, सच युगों-युगों याद आयेंगे।
रश्मि लहर,
लखनऊ