आशियाना बनाया था __ मुक्तक
(१)
तुम्हे अपना समझकर ही_ आशियाना बनाया था।
रास आया नहीं तुमको निशाना हमको बनाया था।
बहुत बैचेन होकर के _घोंसला छोड़ दिया हमने,
तिनके तिनके जोड़ने में पसीना खूब बहाया था।।
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(२)
नशा यह दौलत का यारो बड़ा नशीला होता है।
शब्द अनचाहे निकलते है लाल पीला होता है।
गिड़गिड़ाते रहो चाहे _ भरो तुम कितनी ही आहे,
गाल निर्धन का ही तो हमेशा गीला होता है।।
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(३)
बिना ही खोट के चोट दिल को अगर लगती।
सोने वाले सो जाते आंख उसकी तो जगती।
कोसता खुद को रहता खता थी कौन सी मेरी,
आएगी नींद फिर कैसे वह कोसों दूर है भगती।।
राजेश व्यास अनुनय