आशार
कुछ बंदिशे यूं ही बन गई,
मेरी कलम तो खामोश थी!
आवारगी सरेशाम खुलगई,
बस तमन्नाये सरफरोश थी!!
दर्द के हर मुकाम से गुज़र गया,
हो तुझमें सलाहियत नया दर्द दे!
हवाओ की नरमी नश्तर चुभl रही,
फिर भी ख्वाहिश मौसम सर्द दे!!
हमने उकेरे चद अल्फाज,
जिंदगी की बेमानियां के!
आपने नाम ‘गज़ल’ दे दिया,
है ज़र्रानवाज़ी बस आपकी!
कहता हूं बशर नहीं काम की!!