आलाप
आलाप दिल का,
सुन रहा है,
इच्छाओं का स्पंज
और उनको सोखता
रहता है,
ये गुब्बारे
सा फूलता मन।
डायबिटीज की
गोली जैसा मीठा
उसका बोलना।
पर, दिनचर्या की,
जददोजहद,
ऐसी,जैसे
कांटो भरे गुलाब के
बगीचे मे लहराती
आवारा महक ।
इसलिए,
मन के आकाश
में खूब पानी वाला
काला बादल बनाया उसने ।
जो, चुपके से,
बरसता है,
रसोई की ,
खिडकी के बाहर,
आटा ,चावल के
खाली कनस्तर से
बजबजाते
इस मन को
इतना तो विश्वास है कि
कभी न कभी सांसों के
पुल पर होकर
बचपन वाला गांव छू भर ही
आयेंगे कभी न कभी।