आबरू
क्या हैं गरीब की इज्ज़त और क्या है आबरू
कभी तो बंधु होइए,इससे भी रु ब रू,
करते अथक श्रम,भरता न पेट पर
अर्जित धान्य सूदखोर,ले जाता समेटकर।
कुछ रईस करते, इज्जत को तार तार,
मर मर कर जीते वे,जिंदगी हरबार।
मेरा बस ये कहना,उन मानवों से आज,
बहाओ पसीना और सुधारो समाज।
नेक काम ऐसे हो,आज से ही शुरू
ताकि बच सकें,हम सबकी आबरू।
रामनारायण कौरव