Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Oct 2023 · 3 min read

जीते जी पानी नहीं

जीते जी पानी नहीं मरे पर खीर
*********
यूँ तो यह कहावत है, लेकिन मन की पीड़ा और आज के बदलते परिवेश में यथार्थ लोकोक्ति और हम सबके लिए आइना है । अपवादों को छोड़कर आज लगभग हर परिवार में यही देखने में आ रहा है। अपने जिन बुजुर्गों की मेहनत, साधना और प्रार्थना की बदौलत हम इतराते हैं, सुख सुविधाओं के लायक बन सके हैं, कुछ करने लायक हो गये हैं, हमारे माता पिता और बड़े अब बुजुर्ग हो चुके हैं जब उन्हें हमारी जरूरत है, हमारे कर्तव्य निभाने का समय आ गया है तब हम जो कर रहे हैं, उससे किसी और को शर्म भले आ जाए, हमें तो बिल्कुल नहीं आती। हमारे पास उनके लिए समय नहीं है, हमें उनकी कितनी परकवाह है ,यह हमारे व्यवहार से पता चलता है,जब हम उनकी उपेक्षा करने से बाज नहीं आते, उनकी बात नहीं सुनते,। प्रेम के दो शब्द नहीं बोलते, उनके मन के भाव, उनकी इच्छाओं, उनकी परेशानी को सुनना, समझना महसूस नहीं करते, उनको थोड़ा सा भी समय नहीं देते,उनकी आवश्यकताओं के प्रति गंभीर नहीं होते, एक गिलास पानी और समय पर भोजन देने, इलाज और उनकी जरूरत पूरी करने के प्रति हमारा रवैया असंवेदनशील होता है, वे उम्मीद की टकटकी लगाए देखते रहते हैं और हम उनके सामने से ही उन्हें नजर अंदाज कर आते जाते रहते हैं, बीबी,पति बच्चों के साथ हंसी ठिठोली करते हैं, तब हमारे बुजुर्ग जीने की नहीं अपनी मौत की प्रार्थना ईश्वर से करते हैं। और तो और आज की पीढ़ी अपने बच्चों को उनके दादा दादी नाना नानी और बुजुर्गों से दूर रखकर उनकी शेष जिंदगी को और दुरुह बना रहे हैं। क्योंकि हमें लगता है कि हमारा बेटा पुरानी विचार धारा और दकियानूसी बातें सीखेगा, बीमार हो जायेगा, आज की कान्वेंटी शिक्षा को समायोजित नहीं कर पायेगा।
और तो और आज के परिवेश में नुकसान , छुट्टी न मिलने के बहाने अंतिम संस्कार में भी शामिल होने को लेकर भी लापरवाह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ऐसे में अपनी औलाद होते हुए लावारिस की तरह दाह संस्कार रिश्ते दार, पड़ोसी या मित्र और उनके परिवार के लोग करने को विवश हो रहे हैं। ऐसे में पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि आडंबर करते हुए भोज, विविध व्यंजन बनाकर खिलाना, गाय ब्राह्मण कौआ, कुत्ता चींटी को खिलाना, दान दक्षिणा देना आदि कार्यों से अपने धन दौलत का दिखावा करना आम होता जा रहा है। जीवित रहते हुए जिनको हमने तरह तरह से तरसा दिया और उनके मरने पर खीर पूड़ी मेवा मिष्ठान फल फूल दिन दक्षिणा श्राद्ध का दिखावा बड़ा हास्यास्पद लगता है। आखिर क्या औचित्य है? क्या महत्व है इसका? दिखावा आडंबर करने के सिवा कुछ भी नहीं! इसका न तो कोई लाभ है और न ही सार्थकता। बल्कि ऐसा करके शायद हम मृत आत्मा का उपहास ही कर रहे हैं और शरीर छोड़ने के बाद भी उन्हें सूकून से नहीं रहने देना चाहते। अब उनके नाम पर ढोल पीटने, दिखावा करके श्रवण कुमार बनने से क्या फायदा? ये हमारी आपकी आत्मतुष्टि के लिए भी उचित नहीं है, बल्कि ढकोसला है, दंभ है, झूठ मूठ का लगाव है, जिसे हम दुनिया को दिखाते प्रतीत होते हैं।
वास्तव में “जीते जी पानी नहीं मरे पर खीर” का असली भावार्थ यही है और कुछ नहीं, जो हम करते हैं, खुद ही गुमराह होते हैं और अपनी पीठ थपथपा कर बहुत खुश होते हैं। क्योंकि हम अपने साथ साथ पूर्वजों की भी आंखों में धूल झोंक कर उनके प्रति अपनी असंवेदनशीलता का उत्कृष्ट उदाहरण पेश कर रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 120 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
* धरा पर खिलखिलाती *
* धरा पर खिलखिलाती *
surenderpal vaidya
आप जितने सकारात्मक सोचेंगे,
आप जितने सकारात्मक सोचेंगे,
Sidhartha Mishra
#तेजा_दशमी_की_बधाई
#तेजा_दशमी_की_बधाई
*Author प्रणय प्रभात*
‘निराला’ का व्यवस्था से विद्रोह
‘निराला’ का व्यवस्था से विद्रोह
कवि रमेशराज
शीर्षक - बुढ़ापा
शीर्षक - बुढ़ापा
Neeraj Agarwal
दोहा पंचक. . . .
दोहा पंचक. . . .
sushil sarna
सदा बेड़ा होता गर्क
सदा बेड़ा होता गर्क
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
माँ दुर्गा मुझे अपना सहारा दो
माँ दुर्गा मुझे अपना सहारा दो
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
3261.*पूर्णिका*
3261.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
THE MUDGILS.
THE MUDGILS.
Dhriti Mishra
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
24)”मुस्करा दो”
24)”मुस्करा दो”
Sapna Arora
हिन्दी दोहा लाड़ली
हिन्दी दोहा लाड़ली
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
Rituraj shivem verma
*समीक्षकों का चक्कर (हास्य व्यंग्य)*
*समीक्षकों का चक्कर (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
आखिर कब तक
आखिर कब तक
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
The magic of your eyes, the downpour of your laughter,
The magic of your eyes, the downpour of your laughter,
Shweta Chanda
घर सम्पदा भार रहे, रहना मिलकर सब।
घर सम्पदा भार रहे, रहना मिलकर सब।
Anil chobisa
गूॅंज
गूॅंज
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
बताता कहां
बताता कहां
umesh mehra
मोहब्बत का पैगाम
मोहब्बत का पैगाम
Ritu Asooja
बूँद-बूँद से बनता सागर,
बूँद-बूँद से बनता सागर,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
हे मृत्यु तैयार यदि तू आने को प्रसन्न मुख आ द्वार खुला है,
हे मृत्यु तैयार यदि तू आने को प्रसन्न मुख आ द्वार खुला है,
Vishal babu (vishu)
I hope you find someone who never makes you question your ow
I hope you find someone who never makes you question your ow
पूर्वार्थ
सांवले मोहन को मेरे वो मोहन, देख लें ना इक दफ़ा
सांवले मोहन को मेरे वो मोहन, देख लें ना इक दफ़ा
The_dk_poetry
सत्य
सत्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
नहीं-नहीं प्रिये
नहीं-नहीं प्रिये
Pratibha Pandey
"जोकर"
Dr. Kishan tandon kranti
राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी
राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी
लक्ष्मी सिंह
Loading...