आफ़ताब
हर शाम आफ़ताब
जब जमीं को है चूमता
वो फ़लक़ से शर्म से सुर्ख़ होता है
तब शफक़
कुछ देर की ही बात है
ओढ़ कर सुनहरा सा दुपट्टा
दरिया की आगोश में
ख़्वाबों की दुनियाँ में
सोता आफ़ताब है रात भर
हर शाम आफ़ताब
जब जमीं को है चूमता
वो फ़लक़ से शर्म से सुर्ख़ होता है
तब शफक़
कुछ देर की ही बात है
ओढ़ कर सुनहरा सा दुपट्टा
दरिया की आगोश में
ख़्वाबों की दुनियाँ में
सोता आफ़ताब है रात भर