आप करते तो नखरे बहुत हैं
आप करते तो नखरे बहुत हैं
पर हमें लगते अच्छे बहुत हैं
हम तो हैं आपके ही दिवाने
आप पर जां छिड़कते बहुत हैं
टूट भी कुछ गए तो हुआ क्या
देखने को तो सपने बहुत हैं
रिश्ते हमको मिले भी नए तो
रिश्ते छूटे भी हमसे बहुत हैं
लोग हमसे हैं आगे भी तो क्या
पीछे भी तो हमारे बहुत हैं
पढ़ना आता नहीं हमको चेहरा
गलतियां इसमें करते बहुत हैं
बात सुनते न जो अपने दिल की
बाद में हाथ मलते बहुत हैं
पीठ में घोंपते हैं जो खंजर
लोग अपनों में ऐसे बहुत हैं
बजते रहते हैं जो ढोल जैसे
उनके चर्चे भी होते बहुत हैं
जब भी चुभती हैं खामोशियां टी
ज़ख्म देती ये गहरे बहुत हैं
‘अर्चना’ दर्द दिल में है जिनके
लोग ऐसे यहाँ पे बहुत हैं
डॉ अर्चना गुप्ता
01.04.2024