आधुनिक परिवेश में वर्तमान सामाजिक जीवन
कालांतर में सामाजिक जीवन में निरंतर बदलाव आते रहे हैं , जिसके प्रमुख कारक भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तन, सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की स्थिति एवं दैनिक जीवन निर्वाह शैली में अविष्कारजनक परिवर्तन हैं।
सामाजिक व्यवस्था के आधार की इकाई परिवार की संरचना में संयुक्त परिवार से लेकर व्यक्तिपरक परिवार में आने वाले समयान्तर में आए सामाजिक सोच के फलस्वरूप संयुक्त परिवार के विभक्तिकरण से व्यक्तिगत परिवार की उत्पत्ति ने ईकाई परिवार की परिभाषा को बदल कर रख दिया है।
इसके प्रमुख कारक व्यक्तिगत अस्मिता, अभिलाषा, एवं अपेक्षा हैं , जिनसे समूह मानसिकता के स्थान पर व्यक्तिगत दृष्टिकोण का निर्माण हुआ है ।
शिक्षा के फलस्वरुप ज्ञान एवं प्रज्ञा शक्ति में वृद्धि से समाज में व्यक्तिगत प्रबल इच्छा शक्ति की उत्पत्ति हुई है , जिसका योगदान सुदृढ़ इकाई परिवार की संरचना में हुआ है।
आधुनिक युग में विभिन्न आयामों में प्रगति के फलस्वरूप दैनिक जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है।
व्यक्तिगत आय की वृद्धि से आय का प्रमुख भाग विलासिता एवं उपभोग की वस्तुओं में निवेशित हुआ है, एवं जनसाधारण में उपभोक्ता मानसिकता का विकास हुआ है।
वे वस्तुएं जो पहले विलासिता की सामग्री परिभाषित होती थी , आज दैनिक आवश्यकता का अंग बन चुकी है। समाज में आय एवं व्यक्तिगत संपत्ति को समाज में व्याप्त प्रतिस्पर्धा की समूह मानसिकता के चलते को सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मान लिया गया है। जिसके कारण समाज में विलासिता की सामग्रियों के उपभोग में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है।
संयुक्त परिवारों के टूटने से आए सकारात्मक परिवर्तनों के साथ ही नकारात्मक बदलाव भी दृष्टिगोचर होते हैं। संयुक्त परिवार के भावनात्मक जुड़ाव एवं अंतर्निहित मूल्यों एवं संस्कारों के पोषण की कमी व्यक्तिगत परिवारों में अक्सर देखी जाती है। व्यक्तिगत परिवार में समग्र परिवारिक कल्याण के स्थान पर व्यक्तिगत स्वार्थपरकता का प्रमुख स्थान है। जिसके कारण अधिकांश परिवार टूटने की कगार पर खड़े हुए हैं।
सकारात्मक दृष्टि से व्यक्तिगत परिवार में आए बदलाव से स्त्री को पुरुष के समान उन्नति के अवसर प्रदान करना एवं उसकी सामाजिक अस्मिता स्थापित करना है।
आधुनिक समाज में संस्कारों एवं मूल्यों का हनन् परिलक्षित होता है। इसका प्रमुख कारण भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है।
पाश्चात्य संस्कृति की सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मक का अधिक प्रभाव वर्तमान समाज पर पड़ा है। जिसमें धनोपार्जन के लिए परिश्रम के स्थान तुरत कमाई एवं भ्रष्टाचार को अधिक बढ़ावा दिया है।
व्यापार में भी धोखाधड़ी एवं गलत नीतियों से धन कमाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है।
आधुनिक समाज में अंतर्जातीय विवाह एवं अंतर्सांप्रदायिक विवाह का सकारात्मक पक्ष समाज के विभिन्न घटकों मे सामंजस्य स्थापित करना तो है ,
परंतु इसका नकारात्मक पक्ष रूढ़िवादी तत्वों द्वारा सामाजिक विरोध एवं सामूहिक बहिष्कार के रूप में प्रस्तुत होता है।
हमारे देश की त्रासदी यह है कि की अभिजात्य वर्ग इन सब विसंगतियों से अछूता रहकर समाज में अपना स्थान संरक्षित रखता है , परंतु निम्न एवं मध्यम वर्ग को इन सबके दुष्परिणामों को भोगना पड़ता है।
हमारी देश की राजनीति में भी कथनी और करनी में बहुत फर्क है , जिसके कारण आम आदमी की व्यक्तिगत सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं है।
आधुनिक समाज में नारी की स्वतंत्रता एवं आर्थिक रूप से सक्षमता जहां एक ओर उसकी सामाजिक अस्मिता एवं आत्मनिर्भरता,स्थापित करने में सहायक हुई है।
वही उसके दूसरे पक्ष में उसके पुरुष के प्रति निर्भर न रहने की प्रकृति, आए दिन पति – पत्नी में विवाद का कारण बनी है। जिसके फलस्वरूप आए दिन विवाह विच्छेद की समस्याएं भी बढ़ीं है।
सामाजिक व्यवस्था के नियमन में अच्छे साहित्य, संचार माध्यम , एवं फिल्मों की प्रमुख भूमिका
रही है। परंतु वर्तमान में मीडिया एवं टीवी सीरियल में पारिवारिक नकारात्मकता एवं विसंगतियों को स्थापित पारिवारिक एवं सांस्कृतिक मानकों का खुलेआम उल्लंघन कर विकृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है , जिसका परोक्ष प्रभाव आम आदमी की परिवार के प्रति मानसिकता पर पड़ता है।
अन्य प्रचार एवं प्रसार माध्यम एवं इंटरनेट में विभिन्न सामाजिक मंच जैसे फेसबुक ,इंस्टाग्राम , व्हाट्सएप इत्यादि द्वारा समूह मानसिकता को प्रेरित कर बढ़ावा दिया जाता है। जिसमें किसी विषय अथवा व्यक्ति विशेष के प्रति नकारात्मक का प्रचार एवं प्रसार व्यक्तिगत द्वेष, राजनीतिक स्वार्थ अथवा कुत्सित मंतव्य की तुष्टिकरण के लिए किया जाता है।
इन प्रसार माध्यमों द्वारा वर्तमान में आम आदमी की परिवार के प्रति सोच एवं पारिवारिक व्यवस्था को परोक्ष रूप से कलुषित करने में एक प्रमुख भूमिका है।
टीवी समाचार चैनलो, यूट्यूब इत्यादि के माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष का महिमामंडन एवं झूठे समाचार प्रसारित कर, देश में धर्मांधता फैलाकर, देश में सांस्कृतिक एवं सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़कर, देश में सर्वधर्म समभाव को नष्ट करने की कोशिश की जाती रही है।
अतः वर्तमान परिपेक्ष में सामाजिक जीवन एक संघर्षपूर्ण जीवन है। जिसको प्रभावित करने वाले अनेक कारक है।
देश में महंगाई , बेरोजगारी एवं समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं एवं निरंकुश राजनीति के चलते आम आदमी का सामाजिक जीवन एक जटिल समस्या बनकर रह गया है।
आम आदमी को जीवन यापन की दैनिक जरूरत की आवश्यक सुविधाओं खाद्यान्न, आवास ,बिजली ,पानी इत्यादि के लिए दिन- प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ रहा है।
शनैः शनेः पूंजीवाद समाजवाद की जगह ले रहा है।
वर्तमान में हम छद्म धर्मनिरपेक्षता के दौर
की सामाजिक व्यवस्था के अनिश्चित भविष्य में जी रहे हैं।