*आदमी यह सोचता है, मैं अमर हूॅं मैं अजर (हिंदी गजल)*
आदमी यह सोचता है, मैं अमर हूॅं मैं अजर (हिंदी गजल)
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1)
आदमी यह सोचता है, मैं अमर हूॅं मैं अजर
छोड़ दुनिया जा रहे हैं, लोग सदियों से मगर
2)
सब महल कोठी जमीनें, रह गईं पसरी पड़ी
आदमी जब चल बसा तो, नाम औरों के नगर
3)
आज निकला सूर्य है जो, वह नया कुछ और है
वह पुराना था बहुत ही, कल मरा जो डूब कर
4)
ऋतु बदलती सूर्य ढलता, चंद्रमा घट-बढ़ रहा
जन्म लेता आदमी है, और फिर जाता है मर
5)
देह नश्वर है सभी की, एक दिन जाना लिखा
छोड़ जाते हैं मगर कुछ, नवसृजित करके डगर
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451