*आत्मा गवाही देती है*
कहो न सच -सच
जो लगे सच -सच
न झूठ लगे, न मिथ्या लगे
न अनर्गल लगे किसी को
बोलो ऐसा सहज ही कि
गले उतर जाए सभी को।
सच तो करुआ होता है
चुभता भी है, निंदनीय भी होता है
दिल पर मलहम भी लगता है
कभी सौगात लाता है
कभी सौ लात लाता है
कभी पान खिलाता है
कभी गाली सुनाता है।
शब्द, वाण की तरह होता है
बिना चले ही चल जाता है
आदमी को हताहत कर देता है
मर्माहत कर देता है
अंतर्मन आत्मा को वेध देता है
सच बोलने की कोई सजा भी पता है।
कुछ ही लोग होते हैं, जो
सच का सामना करते हैं या
सच का सामना कर पाते हैं
गीता और कुरान पर हाथ रखकर भी
कोई कितना सच बोलते हैं
यह तो वे ही जानते हैं।
जितना झूठ बोलना है, बोलो न !
जितना असत्य बोलना है, बोलो न !
जीतना मिथ्या बोलना है, बोलों न !
ऐसा बोलने से किसने मना किया है?
अधिवक्ता जी हैं, जज साहब हैं न !
सच जुबां पर आ ही जाता है।
आईना झूठ नहीं बोलता है
आपकी भाव – भंगिमा देखकर
सच बोलने से कतराते हुए
आपका बॉडी पोस्ट्चर सब कुछ बता देता है
आत्मा गवाही देती है
नार्को से कहां कोई बच पाता है।
************************************”** @स्वरचित और मौलिक
घनश्याम पोद्दार
मुंगेर