Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Sep 2024 · 2 min read

#आज_की_बात-

#आज_की_बात-
★ मुग़ालते में जीने वालों के साथ।
【प्रणय प्रभात】
सूरज प्रतिदिन उदित होता है। यह सोचे बिना कि उसकी धूप या चमक से किसको एलर्जी है। चंद्रमा एक पखवाड़े उगता है। यह परवाह किए बिना कि उसकी कौन सी कला या छवि लोगों को अप्रिय है। दिन निकलता है। जिसे जागना हो जागे, न जागना हो पड़ा रहे। रात आती है हर दिन। सोना लोगों की मर्ज़ी। जागते रहें, तो रात का क्या बिगड़ता है। मौसम आते-जाते हैं। अच्छे लगें या बुरे। हवाएं चलती हैं हर समय। जिन्हें नज़ला हो, बंद रहें चारदीवारी में। बारिश को आना है तो आती है। यह चिंता किए बिना कि किसे भीगने से परहेज़ है। कुल मिला कर जिसका जो काम है, वो उसे करते रहना है।
ठीक इसी तरह “साहित्य-साधकों” का काम है, सृजन की प्रवाही परम्परा को बनाए रखना। सरिता-सागर, पेड़-पौधों की तरह। यह सोचे बिना, कि कौन क्या सोचेगा। क्या कहेगा, सुनेगा या करेगा। मील के पत्थर हों या समुद्र के प्रकाश-स्तम्भ, दिशा-बोध कराने के लिए अडिग हैं अपनी जगह। राही, वाहन, पोत गुजरें न गुजरें, उनकी बला से।
यह सब उनके लिए है, जो मुग़ालते में जी रहे हैं। जो यह सोचते हैं कि उनकी भूमिका रचनाओं के लिए जीवन-रक्षा प्रणाली की तरह है। रचना हो या विचार, कालजयी होते हैं। उनकी अपनी सांसें, अपनी धड़कनें होती हैं। रचनाएं सामयिक हों या शाश्वत, समय के सीने पर सदा के लिए शिलालेख सी स्थापित होकर रहती हैं। आने वाले कल में अतीत की साक्षी बनने के लिए।
ऐसे में सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में खोखली बनावट और दिखावे की सजावट के साथ जी रहे लोगों का यह भ्रम दूर हो जाना चाहिए, कि रचना का अस्तित्व चार आने के लाइक, आठ आने के रेडीमेड कॉमेंट या बारह आने के शेयर पर टिका है। हर विचार अपने आप में सौलह आने व सौ टके का होता है।
किसी की मिसाल देने की मुझे कोई ज़रूरत नहीं। हर आदमी अपनी मिसाल ख़ुद होता है। मैं भी उनमें एक हूँ। फ़ख्र कर सकता हूँ कि मेरे प्रभु ने मुझे लहरों के अनुकूल व प्रतिकूल तैरने की सामर्थ्य दी है। प्रमाण है मेरी अपनी जीवंतता और उसे जीवट देती रचनाधर्मिता। मैं बीते चार दशक से अपने सृजन-धर्म का पालन कर गौरवान्वित हूँ। मेरा काम बस देखना, भोगना, सोचना और लिखना है। हर पल पर, हर परिदृश्य पर, हर परिवेश में। जो पढ़े, उसका भला। जो न पढ़े, उसका दोगुना भला। लाइक, कमेंट्स संभाल कर रखें, अपने पास। जय राम जी की।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)

1 Like · 3 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कविता 10 🌸माँ की छवि 🌸
कविता 10 🌸माँ की छवि 🌸
Mahima shukla
देवों की भूमि उत्तराखण्ड
देवों की भूमि उत्तराखण्ड
Ritu Asooja
तुमको  खोया  नहीं गया हमसे।
तुमको खोया नहीं गया हमसे।
Dr fauzia Naseem shad
बाजारवाद
बाजारवाद
Punam Pande
3608.💐 *पूर्णिका* 💐
3608.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जिंदगी एक सफर सुहाना है
जिंदगी एक सफर सुहाना है
Suryakant Dwivedi
चलो मौसम की बात करते हैं।
चलो मौसम की बात करते हैं।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
*शत-शत जटायु का वंदन है, जो रावण से जा टकराया (राधेश्यामी छं
*शत-शत जटायु का वंदन है, जो रावण से जा टकराया (राधेश्यामी छं
Ravi Prakash
ऐसा नही था कि हम प्यारे नही थे
ऐसा नही था कि हम प्यारे नही थे
Dr Manju Saini
“बचपन में जब पढ़ा करते थे ,
“बचपन में जब पढ़ा करते थे ,
Neeraj kumar Soni
Movers and Packers in Bhiwani
Movers and Packers in Bhiwani
Hariompackersandmovers
दिखता अगर फ़लक पे तो हम सोचते भी कुछ
दिखता अगर फ़लक पे तो हम सोचते भी कुछ
Shweta Soni
प्रेम अटूट है
प्रेम अटूट है
Dr. Kishan tandon kranti
राम सीता लक्ष्मण का सपना
राम सीता लक्ष्मण का सपना
Shashi Mahajan
जब काम किसी का बिगड़ता है
जब काम किसी का बिगड़ता है
Ajit Kumar "Karn"
*किसान*
*किसान*
Dushyant Kumar
कभी चाँद को देखा तो कभी आपको देखा
कभी चाँद को देखा तो कभी आपको देखा
VINOD CHAUHAN
" कृष्णा का आवाहन "
DrLakshman Jha Parimal
क्रिकेट
क्रिकेट
SHAMA PARVEEN
सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
Kumud Srivastava
We Mature With
We Mature With
पूर्वार्थ
आज का रावण
आज का रावण
Sanjay ' शून्य'
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
"दुनिया के बदलने का कोई ग़म नहीं मुझे।
*प्रणय प्रभात*
मुझको इंतजार है उसका
मुझको इंतजार है उसका
gurudeenverma198
सहचार्य संभूत रस = किसी के साथ रहते रहते आपको उनसे प्रेम हो
सहचार्य संभूत रस = किसी के साथ रहते रहते आपको उनसे प्रेम हो
राज वीर शर्मा
सब तो उधार का
सब तो उधार का
Jitendra kumar
भ्रूणहत्या
भ्रूणहत्या
Neeraj Agarwal
फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है
फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
कवि रमेशराज
Loading...