आज नए रंगों से तूने घर अपना सजाया है।
आज नए रंगों से तूने घर अपना सजाया है,
निश्चितता का भाव, तेरे मुख पर छाया है।
नयी खुशियों का घर में, गृह-प्रवेश कराया है,
और भविष्य के सपनों का रेखाचित्र बनाया है।
क्या कभी विचार, उस रंगहीन घर का आया है,
जिसके आँगन में खेलकर, बचपन तूने बिताया है।
उन गिरती दीवारों को, अपने स्पर्श को तरसाया है,
बस खोखले वचनों के भ्रम में, उनको उलझाया है।
कैसे भूल गया, उन उँगलियों को जिसने चलना सिखाया है,
चलते-चलते क्या तू इतनी दूर, निकल आया है?
कभी उन बोझिल आँखों का, ख़्याल तुझे सताया है,
जिसके हर पल में, तेरे इंतज़ार का मर्म समाया है।
क्यों सीढ़ी की तरह, उनको इस्तेमाल कर आया है,
जिन्होंने तेरे सपनों की सार्थकता, को हीं जीवन बनाया है।
हर पल वक़्त के आभाव का, तूने ढोंग रचाया है,
पर ज्ञात है ना प्राथमिकता में, उन्हें कितना पीछे छोड़ आया है।
क्या इस घर में एक कमरा, उनके लिए बनवाया है,
जिनके घर हीं नहीं, जीवन को भी खाली कर तू आया है।