अपील
इसमें कोई दो मत नहीं है कि तर्क, विज्ञान और नवीन विषयों पर लेखनी इंसान को अद्वितीय बनाती है। घिसे-पिटे विषयों पर लेखनी कागज के पन्नों पर दवात की स्याही गिर जाने जैसा ही है। आप लिखें ऐसे कि लोग पढ़ने के लिए बाध्य हो जाएँ, और वह पाठक के उर-अन्तस में उजाला फैलाए।
कलमकारों से अपील कि वे दोहरे मापदण्ड से बचें। अर्थात उनकी लेखनी की छाप उनके चरित्र पर भी दिखाई पड़े। वे अपनी जमीर को कभी खूँटी पर न टांगें। राजतंत्र के दौर की तरह अनावश्यक प्रशस्तियाँ ना लिखें, बल्कि हर भेदभाव से परे होकर सच्चाई और बराबरी पर कलम चलाएँ।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि इससे ‘लोक’ और ‘तंत्र’ दोनों ही मजबूत होकर समन्वित रूप से नव-निर्माण की दिशा में हम अग्रसर होंगे। यह याद रहे कविता के दलाल बनना कदापि उचित नहीं। हर कलमकार यह प्रण करें कि-
मैं एक कलमकार हूँ
कलम का धर्म निभाऊंगा,
माँ भारती की सेवा में
सब कुछ अर्पण कर जाऊंगा।
शुभकामनाओं सहित…।
आपका अपना साथी
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त।
संस्थापक-अध्यक्ष
छत्तीसगढ़ कलमकार मञ्च।