आखिर क्यों?
आखिर क्यों?
ये सवाल बहुत बार मेरे मन में आता है
आखिर क्यों हर कोई अपना हक जताता है
बेटी , बहन,पत्नी , बहु फिर बनी मां हर किरदार नारी को सशक्त बनाता है
वो ये सारे किरदार निभाएंगी
ना जाने क्यों ख़ुद को भूल जाएगी
उसकी भी ज़िंदगी है उसके भी सपने है
जो थोड़ा सा वक्त चाहती है खुद के लिए
आखिर उसके दिल में भी बसे कुछ अपने है
उसने ज्यादा कुछ तो कभी चाहा ही नहीं
सभी रिश्तों के बीच से खुद को मांगती है
उसकी दुनिया बेहद छोटी सी है
वो अपनी दुनिया में खुद को भूल जाती है
सबकी खुशी मांगती है वो रब जी से पर अपने लिए मांगना भूल जाती है
जब होश आता है खुद के वक्त का
तो उम्र आगे की तरफ़ बढ़ जाती है
एक बार फिर इस समाज के डर से वो खुद को भूल जाती है
पर मैं तो यही कहना चाहती हूं
किरदार सारे खुशी से निभाती हूं
वक्त मिलता नहीं है मांगने से
इसलिए इस भागती हुई जिंदगी से कुछ पल खुद के लिए चुराती हूं
ढूंढ़ ही लेती हूं मैं वो पल जो मेरे चेहरे पर मुस्कान बनकर आते है
जानती हूं इतना आसान नहीं है खुद को मान देना
लेकिन सम्मान देते है वोही सम्मान पाते हैं
तो फिर नारी क्यों बन बैठी बेचारी
ये जो बीत रही है जिंदगी ये अभी भी है तुम्हारी
वक्त मिलेगा नहीं इसको तुम खुद के लिए लेकर आओ
सबके साथ साथ खुद की खुशी का भी नाम ले आओ।
रेखा खिंची ✍️😊