आखिर क्या है दुनिया
डुग्गू ने दादाजी को अनेक बार कहते सुना था कि अभी दुनिया देखी कहाँ है? डुग्गू दादाजी से जिद कर कहता- “दादाजी, आखिर क्या है दुनिया? हमें दुनिया दिखलाओ ना।”
आखिरकार एक दिन दादाजी उड़नपखेरू घोड़े की पीठ पर डुग्गू को बिठाकर दुनिया दिखाने चल पड़े। कुछ दूर जाने के बाद एक गाँव पड़ा। उस गाँव के लोग कहने लगे- “अरे बच्चे का क्या, वो तो पैदल चल सकता है। बच्चों को थकान भी नहीं लगती। घोड़े की पीठ पर बैठना ही था तो बूढ़ा बैठ गया होता। यह बात सुनकर दादाजी ने पोता डुग्गू से कहा- सुन लिया तुमने। अब घोड़े पर मैं बैठता हूँ, तुम पैदल चलो।
कुछ दूर आगे पहुँचने पर नजर पड़ते ही उस गाँव के लोगों ने कहा- बूढ़ा अजीब है, बच्चा पैदल जा रहा और वह बूढ़ा घोड़े की सवारी करता हुआ। बच्चा तो बच्चा है, थककर अस्वस्थ हो सकता है। घोड़े पर दोनों ही बैठ सकते थे।
दादाजी ने पोता से कहा- सुन लिया तुमने, अब आ जाओ हम दोनों ही घोड़े की सवारी करते हुए चलते हैं। दोनों घोड़े पर बैठ गए। फिर बड़े मजे से चलने लगे। फिर एक गाँव पड़ा। उस गाँव के लोगों ने फिर कहा- दोनों बड़े निष्ठुर हैं। इस भरी दोपहरी में घोड़े की पीठ पर लदकर जा रहे हैं। बेहतर होता घोड़े को राहत देने के लिए दोनों ही पैदल चल लेते।
दादाजी ने डुग्गू से फिर कहा- सुन लिया तुमने। चलो हम दोनों उतरकर अब पैदल ही चलें। फिर वे दोनों घोड़े के संग-संग पैदल चलने लगे। कुछ दूर बाद फिर एक गाँव पड़ा। उस गाँव के लोगों ने कहा- कैसे अजीब लोग हैं, हृष्ट-पुष्ट घोड़े के रहते पैदल चले जा रहे हैं।
दादाजी ने डुग्गू से फिर कहा- सुन लिया तुमने। यही दुनिया है। कुछ भी करो, आलोचना करेंगे ही। प्रशंसा और प्रोत्साहन देने वाले विरले ही होते हैं। बेहतर यही कि अपनी सूझबूझ से कार्य करते रहें।
मेरी प्रकाशित लघुकथा-संग्रह :
मन की आँखें (दलहा, भाग-1) से,,,,
डॉ किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त।