आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो
आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो
क्यों फिर छोटी-छोटी बातों पर तुम शर्मिंदा हो
खुला आसमान खुली हवाएं बैठी अंतर्मन में ज्वाला
फिर भी पर ही नहीं फेहराये ऐसा कौन परिंदा हो
शांत चित् से मरुधरा पर ऐसे बैठ गए हो तुम
जैसे तूफानों से टकराकर घायल कोई परिंदा हो
वीर शिवा के वंशज हो और जिगरा है फौलादी
ऐसा कुछ कर जाओ की दिखला दो कि जिंदा हो
श्वेत रंग सा चरित्र हो अपना आंखों में हो तेज भरा
दिल में तूफानों सा उठता और हृदय में आवेग भरा
दिल में दीप जला करके अंधियाले को दूर भगाओ
आसमान में उठता गौरव, ईश्वर के पृथक् चुनिंदा हो
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