आकाश
आकाश
तुम व्यापक हो
अनन्त हो
अपरिमित हो
शान्त और अक्षुण्य हो।
कभी मौन
कभी अति चंचल
कभी कारे
कभी उज्जवल-धवल।
पता नहीं तुम्हारा
यह कैसा समर्पण,
कहीं ऐसा तो नहीं
कि तुम हो
कोई अन्तर्मन का दर्पण।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
बेस्ट पोएट ऑफ दि ईयर।