आकाशवाणी: अंतरिक्षवाणी
आदमी-
हैलो एलियन कैसे हो?
मैं…मैं…आदमी..जी हां
दूर पृथ्वी से आया हूं
मैं सबसे आगे निकल
तुमसे पूछने आया हूं
मैं तो ढूंढते थक गया
तुम बता दो एलियन
क्या इस ब्रह्माण्ड में
कहीं और हैं जीवन?
पृथ्वीवासियों को अब
परग्रहीयों को हैं जीतना
भेद, स्पर्धा, ऊंच-नीच
के बीज में है वहा बोना
एलियन-
तो सुन हे आत्ममुग्ध !
हे स्वयंसिद्ध मानवश्रेष्ठ
किस मानक से बना
तू स्वयं स्थापित-सर्वश्रेष्ठ
ये माना कुछ समय से तू
ज्ञान-विज्ञान तो समझ रहा
पर कभी-कभी फिर वही
अंधविश्वासों में उलझ रहा
तेरे लिए तो फिलहाल
पृथ्वी पर ही जीवन है।
तेरे अस्तित्व के लिए
बस पृथ्वी ही साधन है।।
तेरी ये यूज एंड थ्रो की
कैसी बन रही संस्कृति?।
काम निकालने की और
फिर फेंक देने की प्रवृत्ति।।
इस इकलौती पृथ्वी को भी
बनाता और ग्रहों सा निर्जन।
बढ़ा प्रदूषण बेतरतीब दोहन
करता सुंदर सृजन-विसर्जन।।
आदमी –
ओह ! तो जीवन न सही
बता दो ब्रह्मांड में ही जल।
हमें इतना भी बता दोगे तो
जल से जीव बना देंगे कल।।
एलियन –
ब्रह्मांड में तू ढूंढ रहा जल।
यूरेका-यूरेका कहने को बेताब।।
परग्रहों पर भी जमींदारी के।
देख रहा है अनगिनत ख्वाब।।
जल ही जीवन है इसलिए।
पृथ्वी में जल तीन-चौथाई।।
जल-थल, नभचरों के लिए।
यह अनोखी धरती है बनाई।।
पर आज तू नासमझी कर।
विनाश ला रहा पृथ्वी पर।।
पृथ्वी जैसा नहीं कही घर।
नही कही पूरे अंतरिक्ष भर।।
~०~
मौलिक और स्वरचित: कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या:०४- मई २०२४-©जीवनसवारो