अज़नबी मैं
कविता
अज़नबी मैं
*अनिल शूर आज़ाद
गांव के
जोहड़ में
कागज की/कश्तियां छोड़ने
और फिर/यहां शहर आकर
इश्क की शायरी लिखना
शुरू करने से लेकर
आटे-नून- तेल के
भाव याद होने की
अवस्था के पश्चात्
जब-जब
हिसाब करने/बैठा हूं
अतीत की/कितनी ही यादें
सवालिया निशान बनकर
मुंह चिढ़ाने लगी हैं
कई बार तो/निहायत
अज़नबी सा/लगता हूं
खुद को ही मैं!
(रचनाकाल : वर्ष 1987)