अहोभाग्य
शीर्षक – अहोभाग्य
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
पहचान के लिए आज जूझ रहा है साहित्यकार ।
कर रहा कविता लिख रहा लेख हर समूह – हर बार ।
एक पत्र सम्मान का प्रशस्ति की खातिर मिला ।
नाम के आगे सम्माननीय समूह में प्रशासक ने लिखा ।
हो प्रोत्साहित उनके इस उद्बोधन से कवि ने धन्य कहा ।
मान कर पहचान अपनी वो इसे कितना गर्वित हो रहा ।
सामाजिक पटलों पर ऐसे रोज़ सम्मेलन हो रहे ।
पहचान बांटते पत्रों के माध्यम से व्यक्तिगत आस्था खो रहे ।
दूर –दूर से ही सही मेरी भी पहचान बनी ।
सम्पूर्ण भारत अब बना मेरी अपनी है स्थली ।
सामने पड़ जाये यदि कोई न देगा ध्यान ।
बस इतनी पहचान है अरे , सुनिए तो श्रीमान ।
निशुल्क सम्मेलन हुआ कहलाया अंतर्राष्ट्रीय ।
विदेश से सहभागी एक नहीं शामिल थे सिर्फ भारतीय ।
मन मसोस कर रह गए कविता पढ़ने की जब आई बारी ।
मंच पर बैठे हुए थे सिर्फ प्रबंधन के अधिकारी ।
पहचान के लिए आज जूझ रहा है साहित्यकार ।
कर रहा कविता लिख रहा लेख हर समूह – हर बार ।
एक पत्र सम्मान का प्रशस्ति की खातिर मिला ।
नाम के आगे सम्माननीय समूह में प्रशासक ने लिखा ।
सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए शुल्क था नियम अनुसार, जिसमें थी श्रेणियां अलग – अलग
पहला मात्र रुपए सौ जिसके अंतर्गत एक प्रशस्ति पत्र श्वेत श्याम हस्त लिखित।
दूसरा मात्र दो सौ रुपए खर्च पर आपके पोस्टर व चित्र के साथ रंगीन सुसंस्कृतिक।
लेकिन तीसरा था लुभावन तीन सौ के शुल्क संग एक मेडल सहित अलंकारिक।
और चौथा तो बहुत आकर्षक था , चार सौ का गोल्डन फ्रेम में जड़ा, अंतराष्ट्रीय स्तर पर खरा।
पंचम सम्मान पुस्तक के विमोचन समारोह पर आधारित था , जिसमें चतुर्थ के संग एक राष्ट्रीय राजनेता ने आपको सादर देना था।
सहभागिता सुनिश्चित थी शुल्क जमा करने पर आधारित आपके साहित्यिक योगदान से।
साथ में जुड़ी थी संस्था द्वारा आयोजित प्रतिमान से।
यही निशुल्क सम्मेलन हुआ कहलाया अंतर्राष्ट्रीय ।
विदेश से सहभागी एक नहीं शामिल, थे सभी भारतीय ।