अहंकार
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अहंकार मन में भरा, केवल एक विचार।
इसमें रहता ही नहीं, कभी छुपा कुछ सार।। १
अहंकार मानव हृदय, सकारात्मकअभाव।
जिसको होता है सदा, नकारात्मक लगाव।। २
घटे अहं से बुद्धि, बल, विद्या, संपति, ज्ञान।
जो मानव इसमें पड़ा, उसका घटता मान।। ३
अहंकार वो बीज है, पनपे जहाँ विकार।
मन से बाहर फेंक दो, निर्मल रखो विचार ।। ४
अहंकार मन में भरे, दोष क्रोध का भार।
जो सबकी निन्दा करे, सोचे न एक बार।। ५
अहंकार को त्याग दो, समझदार इंसान।
देख नहीं तो लूटिया, डूबा देगा भगवान।। ६
मिट्टी का तन है बना,, अहं करे बेकार ।
जाना होगा एक दिन, छोड़ तुझे संसार।। ७
`मैं ही करता हूँ ‘सदा, यही है अहंकार।
‘दो मैं’ को, ‘ मैं से हटा, हो सबका सत्कार।। ८
मूढ़ कंस पापी बहुत, रखा अहं को पाल।
निज बहनोई बहन को, दिया जेल में डाल।। ९
अहंकार जब भी बढ़ा, प्रभु लेकरअवतार।
किया नष्ट चुन-चुन सभी, पापी का संहार।। १०
चलता दुर्योधन,शकुनि, अहंकार वश चाल।
खुद अपने ही हाथ से, बुला लिया था काल।। १ १
ज्ञानवान रावण बहुत,जग में बड़ा महान।
अहंकार वश में घटा, उस पापी का मान।। १२
अहंकार है मूढ़ता, जो करता विष पान।
रहे दूर हर सत्य से, भरे हृदय अज्ञान।। १ ३
अहंकार उर में भरे, अवगुण का भंडार।
खतरनाक यह रोग है,मिले नहीं उपचार।। १४
अहंकार जिसने किया,रहा न उसका शाख।
रूई लिपटी आग ज्यो, जलकर होता राख।। १५
सदा अहंकारी मनुज, करे हानि खुद आप।
अहंकार सम है नहीं, दूजा कोई पाप।। १६
करे अहंकारी मनुज, सिर्फ अहं से प्यार।
गुरू ज्ञान,प्रभु, साधु को,जो समझे बेकार।। १ ७
मूढ़ अहंकारी मनुज, निश्चित समझो नाश।
बनो नम्र,शालीन तुम, होगा सदा विकास।। १८
अहंकार के फण बहुत, है जहरीला नाग।
पी मदहोशी का जहर, मानव उगले आग।। १ ९
अहंकार फलता नहीं, केवल जाता फूल।
औरों को निर्बल समझ, चुभा रहा है शूल।। २०
—लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली