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16 Feb 2024 · 1 min read

एक पल

पल पल गुजरती ज़िंदगी एक दिन गुजर जायेगी।
संभल कर करो कर्म अपने घड़ी मौत भी लाएगी।
रोक न पाओगे उस लम्हे को वो होगा वक्त जाने का।
क्या करोगे फिर बदले और नफरत के अफसानों का।

बचपन के खेल जवानी के मेल सब यहीं रह जायेंगे।
जिम्मेदारियों के बोझ से गुजर जायेगी सारी जिंदगी।
बुढ़ापे के दस्तूर को सुख दुख के अनुभवों में बिताएंगे।
मिली मोहलत अगर ज़िंदगी से सारे दस्तूर निभायेंगे।

कौन जानें कितने फलसफे और कितने मुकाम आयेंगे।
कितने दिन की जिन्दगी है और भला कैसे कह पाएंगे।
सांसों पे ठहरी हुई है इस जिन्दगी की सारी वेलेडिटी।
कितना रिचार्ज बाकी है मुश्किल है ये कैसे बताएंगे।

स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश

1 Like · 37 Views
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