*असीमित सिंधु है लेकिन, भरा जल से बहुत खारा (हिंदी गजल)*
असीमित सिंधु है लेकिन, भरा जल से बहुत खारा (हिंदी गजल)
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1)
असीमित सिंधु है लेकिन, भरा जल से बहुत खारा
नदारद नेह से है जो, लगा किसको भला प्यारा
2)
न किंचित चैन से बैठा, उफनता ही रहा प्रतिपल
बहुत बेचैन है सागर, सदा से ऐंठ का मारा
3)
किनारे बैठकर भी कब, बुझी है प्यास प्यासे की
बहुत छोटी नदी के हाथ, सागर इसलिए हारा
4)
बड़ों की है यही फितरत, कि सबको लील जाते हैं
बहुत मीठी नदी थी जो, निगल सागर गया सारा
5)
जो सागर पैर छू भी ले, डर कर ही जरा मिलिए
डुबाती है जहाजों तक को, इसकी क्रूरतम धारा
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 999 7615451