असली मुद्दे चित्त पड़े हैं
असली मुद्दे चित्त पड़े हैं, राजनीति ने नए शब्द गढ़े हैं
भीड़ में खोया है मतदाता, लोकतंत्र का भाग्य विधाता
कभी चुनावों में, जन कल्याण के मुद्दे उठाए जाते थे
रोटी कपड़ा मकान के, गीत गाए जाते थे
बिजली पानी सड़क विकास, शिक्षा और जन स्वास्थ्य
बेरोजगारी महंगाई गरीबी,आम चुनाव में रहीं करीबी
अब सारे मुद्दे गोल हो गए, वेकार के मुद्दे आम हो गए
जात पात धर्म संप्रदाय अंचल, राजनीति में छाए
मंदिर मस्जिद अगड़े पिछड़े, राजनीति में आए
जानबूझकर उन्हें लड़ाए, कैसे कैसे लफड़े लाए
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, अपनी अपनी डफ़ली भाई
बाहरी चोर उचक्के दलाल, राजनीति की देखो चाल
कट मनी उगाही टोलावाज, खेला भ्रष्ट और दंगाबाज
गोत्र बाहरी जनेऊधारी, देखो नेता की लाचारी
राजनीति ने नए शब्द गढ़े हैं, असली मुद्दे चित्त पड़े हैं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी