अश्रुपात्र A glass of tears भाग 10
दो दिन की छुट्टी की बाद आज स्कूल में फिर रौनक थी। मनोविज्ञान की क्लास में आज केस स्टडी फ़ाइल का सबमिशन होना था। काम लगभग सभी का पूरा था तो सभी बच्चे सन्तुष्ट और खुश थे। तभी क्लास के बाहर नोटिस बोर्ड पर शालिनी मैम ने एक नोटिस लगवाया … फ़ाइल सबमिशन की जगह प्रेजेंटेशन होगा… वो भी प्रेयर हॉल में। मैम ने दीपक सर, दिव्या मैम और रजनी मैम का पीरियड भी ले लिया था।
अब कुछ बच्चे खुश थे जो अच्छा बोल लेते थे… पर कुछ सिर्फ फ़ाइल देना ही चाहते थे उन्हें आगे आकर बोलना ज्यादा पसंद न था। पर आज तो कोई चॉइस ही नहीं थी … शालिनी मैम ने रिकॉर्डिंग की भी व्यवस्था की थी।
पीहू को भी आगे आकर बोलने का कोई खास शौक न था पर आज वो खुश थी। वो अपनी नानी को आज उन लोगों के सामने सम्मानित तरीके से प्रस्तुत करना चाहती थी जो उन्हें पागल समझते थे।
क्लास शुरू हुई तो बच्चों ने देखा प्रिंसिपल मैम के साथ कुछ और टीचर्स भी प्रेजेंटेशन देखने आ पहुँचे हैं।
मैम ने रोल नम्बर के हिसाब से बच्चों को बुलाना शुरू किया। समय की प्रतिबद्धता नहीं थी फिर भी बच्चे तीन या चार मिनट से ज्यादा नहीं बोल रहे थे। पीहू का रोल नम्बर बहुत पीछे था … पर वो बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी अपनी बारी का।
‘अब पारोमिता अपनी केस स्टडी जे साथ आगे आएं और पीहू… अगली बारी तुम्हारी है…’ शालिनी मैम ने उसका नाम पुकारा
अपनी बारी का इंतज़ार करती पीहू अब पोरडीयम पर खड़ी थी….
प्रिंसिपल टीचर्स और क्लासमेट्स का यथोचित अभिवादन कर चुकी पीहू की केस स्टडी कुछ यूँ थी-
‘मेरे सभी साथियों को अपना केस ढूँढने में काफी वक्त लगा होगा… पर मुझे नहीं लगा। क्योंकि मेरे साथी कहते हैं कि मेरा केस तो मेरे घर ही में है … हाँ मेरा केस… मेरी नानी… श्रीमती चन्दा रानी…’
‘तीन दिन पहले तक मुझे भी यही लगता था… पर मैं आज यहाँ बताना चाहती हूँ कि वो कोई केस नहीं बल्कि पूरा का पूरा अस्तित्व है उनका… एक बहुत अनूठा व्यक्तित्व है … केस नहीं हैं वो… नायिका हैं, एक औरत, एक माँ जिसने कभी हार नहीं मानी, जिसने कभी रुकना नहीं सीखा…।’
‘वो दौड़ती रहीं दुनिया, समाज, अपने परिवार और अपने बच्चों की खातिर, उनके साथ … ये साबित करने के लिए कि वो ज़िंदा है, वो खुश हैं। पर सच तो ये था कि उनके दिमाग का उनकी स्मृति का एक अंश ठहर चुका था वहीं अपनी बेटी के साथ, उसी रोज़ जिस रोज़ उन्होंने उसे सदा सदा के लिए खो दिया था।’
‘फिर भी उन्होंने अपने बाकी बच्चों की खातिर… अपने दर्द को अपने चेहरे तक पर नहीं आने दिया। अपने हृदय के भीतर पल पल भरते जा रहे उस अश्रुपात्र को वो खुद ही पी पी कर खाली करतीं रहीं… दोबारा भरे जाने के लिए। उस अश्रुजल के खारेपन से लड़तीं रहीं उम्रभर… बचपन मे पढ़ना चाह कर भी पढ़ने का मौका न मिलने , खेलने की उम्र में शादी हो जाने, अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा काम, ज़िम्मेदारियाँ उठाने, अपनी जान से प्यारी बेटी को खो देने जैसे …. मन मे हज़ार गमों का भार लिए जीती रहीं … मुस्कुरा कर।’
‘और फिर वो समय आया जब सारी ज़िम्मेदारियाँ एक एक कर इधर उधर हो ने लगीं… खत्म होने लगीं। वो समय उन्हें लिए खुशी का हो सकता था … अगर उस समय उनके बच्चों ने उनका उसी तरह साथ दिया होता जैसे उन्होंने अपने बच्चों का दिया था। हाँ मेरी मम्मी, मासी और मामा अपने परिवारों और नौकरियों में व्यस्त हो गए। इतने व्यस्त की अपनी ही माँ का फोन बार बार उठाना, घण्टों लम्बी उनकी बातें सुनना उन्हें परेशान करने लगा…’
कहते कहते पीहू का चेहरा रोने जैसा हो गया।
‘सारी उम्र माता पिता अपने बच्चों को लाड़ प्यार से देखभाल करते हुए बड़ा करते हैं… दुनिया भर के किस्से कहानी सुना कर सतर्क करते हैं … ज़िम्मेदार बनाते हैं। और उसके बाद बच्चों के बच्चों की भी उतने ही प्यार से देखभाल करते हैं…। और बस बदले में हमसे मांगते ही क्या हैं… थोड़ा प्यार थोडी केअर ही तो मांगते हैं ना… ।’
पीहू ने देखा शुचि , ऋतु, मयंक के साथ साथ ज्यादातर बच्चे अपने आँसू पौछ रहे हैं।
‘और जब हम बच्चे … वो भी उन्हें न दे पाए तो उनके पास एक कृत्रिम दुनिया, एक आभासी दुनिया या फिर अपने अतीत के किसी खो चुके रिश्ते, या बीते हुए लम्हों…. के पास जाने के सिवा विकल्प भी क्या बचता है….।’
‘नानी ने भी वही किया… खाली थीं … अपनी गुज़री हुई बेटी को यादों से बाहर ले आईं। इस दुनिया को धीरे धीरे भूलने लगीं… जहाँ भी सुरभि नाम सुनती या दस बारह साल की काले घुँघराले वाली लड़की देखतीं उसी की ओर भागती। अपनी बेटी की यादों के … और यादों में अपनी बेटी के पीछे पीछे दौड़ते दौड़ते मेरी नानी इस दुनिया को अब लगभग पूरी तरह भूल चुकी हैं।’
‘मेरी मम्मी पिछले दो साल से एक छोटे बच्चे की तरह उनका ध्यान रख रहीं थीं पर नानी की तबियत में कुछ सुधार नहीं आ पाया। पर अब आएगा … मैं आप सबको यही बताना चाहती हूँ कि मेरी केस स्टडी अभी खत्म नहीं हुई है बल्कि अब शुरू हुई है। अब जब तक मैं अपनी नानी को एक केस से … खास तक न बना दूँ तब तक शालिनी मैम और अपनी मम्मी का साथ देती रहूँगी।’
‘मैं अपनी मम्मी की पीहू और अपनी नानी की सुरभि … आज आप सबके सामने खुद से ये वादा करती हूँ कि मैं सिर्फ अपनी नानी ही नहीं बल्कि अपने आसपास के व्यक्तियों के भी हृदय में पल रहे इस अश्रुपात्र से उन्हें निजात दिला कर ही रहूँगी और मुझे इस काम मे आप सबका भी पूरा सहयोग चाहिए। उम्मीद है आप सब मुझे निराश नहीं करेंगे।’
सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा… तालियों का शोर कम होते ही पीहू फिर बोली
‘मुझे तालियाँ नहीं … सिर्फ हर दिल मे पल रहा अश्रुपात्र खाली चाहिए … बिल्कुल खाली…’
कह कर पीहू तालियों से गूंजते हॉल से बाहर निकल आई। कल की तरह से आँधी और तेज़ हवाओं का मौसम आज बिल्कुल भी नहीं था। आज तो आसमान बिल्कुल साफ था… पीहू के दिल और दिमाग की तरह।
समाप्त😊🙏