अरे धूर्त!
अरे धूर्त……
धिक्कार है है तुम पर…
कौऐ को भी पीछे कर गये….
वो बेचारा वक्त का मारा..
कम से कम स्वच्छ भारत का सच्चा सिपाही
तुम…..
गंदगी का अंबार लगा रहे–
इर्द-गिर्द चारों तरफ
मन मैला है
वाणी बनावटी
थमी नाली की सड़ाँध भी—
काम तुम्हारे चालाक लोमड़ी से
थोडा बहुत रहम करना कौऐ पर…
उसके पेट पर लात न मारना..
मिले समय तो भीतर बैठा एक इंसान
जब सुबह उठो तो उसे भी जगाना
हो सके तो बस कौऐ का हिस्सा न खाना
उसका काम उसे करने दो तुम अपना चरित्र निभाना।
अरे धूर्त! तुम पर फिर धिक्कार न होगा
कौऐ को है सदा सलाम।