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18 Feb 2024 · 1 min read

“दोगलों की बस्ती”

यूं ही न करना ऐतबार साहब !
ये दोगलों की बस्ती हैं।

एक है सामने तो एक पीछे भी,
यहां दूसरी सबकी हस्ती हैं।

दिखाते हैं ख़्वाब हमें जो साहिल की,
अजि ख़ुद ही डूबी कश्ती हैं।

यूं न करना ऐतबार साहब !
ये दोगलों की बस्ती हैं।

बातें तो करते हैं कुछ, जान तक लुटाने की,
सब दो पल की मस्ती हैं।

हमने तो मौत से लड़कर है जाना,
जिंदगी किसके लिए महंगी, किसके लिए सस्ती है।

यूं ही न करना ऐतबार साहब !
ये दोगलों की बस्ती हैं।

ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)

Language: Hindi
1 Like · 78 Views

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