आम्बेडकर मेरे मानसिक माँ / MUSAFIR BAITHA
यह देह जैविक जननी की जनी हुई है
बाकी सब आम्बेडकर-माँ का दिया हुआ
शब्द जो मैं बोलता हूँ
तर्क जो तेरे विरुद्ध रखता हूँ
चाय–पानी जो मैं तुम्हारे साथ
करने के अब काबिल हूँ
पानी जिसे तुमने जात में रंग दिया था
वह अपना स्वाभाविक रंग पाने का
फिर से अब अधिकारी हुआ
शिक्षा जो सिर्फ तेरी थी
पा कर उसे अब
अपनी अस्मिता पहचानने
और रक्षा में सतत मैं प्रयत्नरत हूँ
माँ तो तेरी भी दो है मेरी तरह
माँ तो तेरी भी एक पुरुष-माँ है मेरी तरह
जबतक तुम इस ब्राह्मणवादी माँ-मुख से
ब्रह्मा-मुख से जनमते रहोगे
इस मानस-माँ पर निर्भर रहोगे
तुम्हारी देह की जननी
और तमाम जैविक माएं
तेरे होने से कलंकित होती रहेंगी
तुम्हारी पुरुष-माँ
तुझे अमानव बनाती है
जबकि मेरे आम्बेडकर-माँ
तुम्हारे मनुसोच से मुझे लड़ने भिड़ने का
पुरजोर माद्दा देते हैं
सहारे जिनके
तुझे दर्द, दुत्कार और चुनौती देने वाली
हर रचना अब रचने में सक्षम हुआ हूँ!
मुझे
अपनी माओं पर गर्व है
मानसिक माँ पर ख़ास
और
तुझे?