अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद
धन्य हुई भाभरा की धरती, धन्य मेरा मध्य प्रदेश हुआ
धन्य हुईं भारत माता, जिसने ऐसा सपूत दिया
२३/०७/१९०६भाबरा में जन्मा,भारतमां का पूतमहान
हंसते किए प्राण निछावर, चंद्रशेखर आजाद महान
पिता थे श्री सीताराम तिवारी,मां जगरानी देवी
उत्तम संस्कार थे उनके, मातृभूमि के सेवी
बचपन बीता भील बालकों में, जब तीर चलाना सीखा
अचूक निशाना था उनका, कभी नहीं जो चूका
16 वर्ष उम्र थी उनकी, जब बनारस में वे पढ़ते थे
क्रांतिकारियों का गढ़ था, मातृभूमि पर मरते थे
जलिया वाले बाग कांड से, युवा बहुत उद्देलित थे
अंग्रेजों के अत्याचारों से,सारे देश में आक़ोसित थे
अंग्रेजों के विरोध में, हुआ एक प़दर्शन था
बालक चंद्रशेखर तिवारी, प्रदर्शन में शामिल था
पकड़े गये चंद्रशेखर जब, अदालत में उनको पेश किया
माफी नहीं मांगी उन्होंने, आरोप सहर्ष कबूल किया
अपना नाम आजाद बताया, पिता का नाम आजादी
देख निडर बालक जज ने, 15वेंतों की सजा सुना दी
नंगे बदन पीठ बालक की, जब वेंत धड़ाधड़ पढ़ते थे
खाल उधड़ जाती थीउनकी, भारतमां की जय करते थे
इंनकलाब जिंदाबाद, नारा उनका प्यारा था
आजाद हूं आजाद रहूंगा, सपना आंखों में पाला था
देश पर जिसका खून न खौले, खून नहीं वह पानी है
जो देश के काम ना आए, वह बेकार जवानी है
नहीं लगा मन फिर पढ़ाई में, आजादी को निकल पड़े
मन्मथ नाथ प्रणबेश चटर्जी, क़ांतिकारी साथी मिले
पहन लिया केसरिया बाना, ससस्त्र क्रांति का एलान किया
जीत या मौत का कठिन रास्ता, आजाद ने स्वीकार किया
पूरे भारत में वीरों ने, आजादी की अलख जगाई थी
ब्रिटिश सरकार थी परेशान, उनको पकड़ न पाई थी
राम प्रसाद बिस्मिल भगत सिंह संग, उनने काकोरी कांड किया
भगत सिंह संग लाहौर में, लाला लाजपत राय की मौत का बदला सांडर्स को मार लिया
सशस्त्र क्रांति को धन जुटाने, सरकारी खजानो को लूट लिया
अंग्रेजों का ध्यान खींचने, संसद में बम विस्फोट किया
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह, बम कांड में जब पकड़ाए
सजा हुई फांसी की उनको, वे सपूत न घबराए
अपील करने से मना किया, नहीं बे आगे आए
फांसी की सजा उम्र कैद में बदले, आजाद ने गहन प्रयास किए
वेश बदल कर पुलिस से बचते, गणेश शंकर विद्यार्थी से लखनऊ में बे आन मिले
२०फरवरी 31 में नेहरू जी से, प्रयागराज में भेंट हुई
गांधी जी से चर्चा करने की, उन दोनों में बात हुई
पंडित नेहरू से कहा उन्होंने, गांधीजी प्रयास करें
शहीदों के प्राण बचाने , लार्ड इरविन से बात करें
27 फरवरी सन 31, अल्फ्रेड पार्क जो अब आजाद पार्क कहलाता है
स्मृति स्थल है शहीद का, वह उनकी याद दिलाता है
सुखदेव राज चंद्रशेखर जी, पार्क में मंत्रणा रत थे
घेर लिया नाट बाबर ने, रस्ते नहीं थे निकलने के
गोलीबारी हुई अचानक, फोर्स बहुत भारी थी
अंग्रेजों के हाथ न आने उनने, आखरी गोली खुद को मारी थी
आजाद जिए आजाद मरे, गोरों के हाथ ना आए थे
मातृभूमि की सेवा में, अपने प्राण गंवाए थे
खबर शहीदी की सुनकर, इलाहाबाद में जाम लगा
शोक हुआ देशभर में, जज्बा आजादी का और जगा
भारत माता की आजादी का, उनका स्वप्न निराला था
आजाद जिऊं आजाद मरूं, उन्होंने स्वप्न यही पाला था
आजादी के दीवाने की, ढेरों अकथ कहानी हैं
कहीं न जांए शब्दों में, उनकी अजब निशानी है
अमर शहीद की अमर कहानी, अपने शब्दों में गाता हूं
अमर शहीद के चरणों में, श्रद्धा से शीश झुकाता हूं
जय हिंद
सुरेश कुमार चतुर्वेदी वंदे मातरम